India Debt 2025: ₹196 लाख करोड़ का बोझ आखिर कौन चुकाएगा?

भारत आज दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। सरकारें हर मंच पर विकास, प्रगति और ‘नए भारत’ की तस्वीर पेश करती हैं। लेकिन इन दावों के पीछे एक कड़वा सच छुपा है—भारत पर लगातार बढ़ता कर्ज़। 2025 तक भारत पर कुल कर्ज़ ₹196 लाख करोड़ तक पहुँचने का अनुमान है। यह आंकड़ा इतना विशाल है कि सोचकर ही सिर घूम जाए। लेकिन असली सवाल यह है कि इस बोझ को आखिर कौन उठाता है? सरकार? नेता? या जनता?

कर्ज़ बढ़ता है, जनता पिसती है

सरकार चाहे कितनी भी योजनाएँ और प्रोजेक्ट्स लॉन्च कर ले, कर्ज़ का बोझ सीधे आम जनता पर ही आता है। सरकार बॉन्ड और लोन के नाम पर पैसा लेती है, और ब्याज चुकाने के लिए टैक्स बढ़ाती है। GST से लेकर आयकर और महंगाई तक, हर रास्ता अंत में जनता की जेब तक ही जाता है। नेता तो अपनी सैलरी और सुविधाओं का मज़ा लेते रहते हैं, लेकिन कर्ज़ का ब्याज आम नागरिक की मेहनत की कमाई से चुकाया जाता है।

क्यों बढ़ रहा है कर्ज़?

  1. फिजूलखर्ची और दिखावटी प्रोजेक्ट्स: चुनावों से पहले बड़े-बड़े ऐलान, स्टेडियम, मूर्तियाँ और अनावश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर। जनता के पैसों का दिखावा ज़्यादा, ज़रूरतें पूरी कम।
  2. वोट बैंक की राजनीति: मुफ्त योजनाएँ और सब्सिडी का ऐलान, लेकिन फंडिंग के लिए कर्ज़ लेना।
  3. डिफेंस पर बेहिसाब खर्च: सुरक्षा ज़रूरी है, लेकिन इसकी आड़ में अरबों-खरबों रुपये खर्च कर दिए जाते हैं, जबकि शिक्षा और स्वास्थ्य पिछड़ जाते हैं।
  4. फिस्कल डेफिसिट: सरकार की कमाई और खर्च में बड़ा अंतर, जिसे हर साल कर्ज़ लेकर पूरा किया जाता है।

कर्ज़ का असली असर जनता पर

भारत सरकार हर साल लाखों करोड़ रुपये सिर्फ़ ब्याज चुकाने में खर्च करती है। यह पैसा कहाँ से आता है? जनता की जेब से।

  • टैक्स लगातार बढ़ते जा रहे हैं।
  • महंगाई बढ़ रही है और रोज़मर्रा की ज़रूरी चीज़ें महंगी हो चुकी हैं।
  • शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के लिए जो पैसा होना चाहिए, वह ब्याज की किस्तों में चला जाता है।
  • जनता को राहत योजनाओं का झुनझुना दिखाया जाता है, जबकि उसकी मेहनत की कमाई सरकार की लापरवाही की भरपाई में लग जाती है।

सरकार का तर्क और जनता की हकीकत

सरकार दावा करती है कि कर्ज़ से विकास होता है, लेकिन अगर यही सच है तो आज भी देश में बेरोज़गारी क्यों चरम पर है? क्यों लाखों युवा नौकरी के लिए दर-दर भटक रहे हैं? क्यों अस्पतालों की हालत खस्ता है और सरकारी स्कूल संसाधनों से खाली पड़े हैं? विकास का ढोल पीटा जा रहा है, लेकिन असली फायदा आम आदमी तक पहुँचता ही नहीं। कर्ज़ के नाम पर फायदा उठाने वाले वही बड़े उद्योगपति और सत्ता से जुड़े लोग हैं, जबकि बोझ जनता के कंधों पर डाला जाता है।

भविष्य का खतरा

आज कर्ज़ जीडीपी के मुकाबले करीब 82% तक पहुँच चुका है। अगर यही हाल रहा तो जल्द ही यह 90% पार कर जाएगा, जो किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक स्तर माना जाता है। इसका सीधा असर होगा—

  • और ज़्यादा टैक्स।
  • सब्सिडी और योजनाओं में कटौती।
  • महंगाई का और बढ़ना।
  • जनता की ज़िंदगी और कठिन होना।

निचोड़

भारत पर आज जो ₹196 लाख करोड़ का कर्ज़ है, वह सिर्फ़ एक आंकड़ा नहीं बल्कि हर भारतीय नागरिक की जेब पर पड़ने वाला बोझ है। सरकार अपनी नीतिगत गलतियों और फिजूलखर्ची को विकास का नाम देती है, लेकिन असल में उसकी कीमत जनता चुकाती है। सवाल यही है कि जब फैसले सरकार लेती है तो बोझ हमेशा जनता पर क्यों पड़ता है? कब तक देश की मेहनतकश जनता सरकार की नाकामयाबियों की भरपाई करती रहेगी?

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